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लेखनी कहानी -22-Jan-2022 अपना घर है स्वर्ग से सुंदर

अपना घर है स्वर्ग से सुंदर

सुधा आज बड़ी खुश थी। और हो भी क्यों नहीं ? उसके बेटे शेखर के विवाह की प्रथम वर्षगांठ जो आने वाली थी 1 फरवरी को। खुशी और उमंग से चेहरा दमक रहा था उसका । पांव थे कि जमीन पर पड़ते ही नहीं थे । मानो वे उसे उड़ाकर ले जा रहे हों । फटाफट घर का सारा काम निबटा कर थक कर  सोफे पर निढाल लेट गयी । डबल मार जो थी । नौकरी भी करो और घर का काम भी करो । कामवाली बाई तक नहीं लगा रखी थी उसने । सतीश ने उससे बहुत कहा था कि कम से कम एक बाई लगा लो जो झाड़ू पोंछा, बर्तन, कपड़े का काम कर‌ दे । लेकिन उसके सिर तो भूत सवार था कि नहीं लगानी कोई बाई वाई । बाई अच्छा काम नहीं करती है । आये  दिन बहाने बनाकर छुट्टी करती रहती है। कभी लेट आती है तो कभी आती ही नहीं । ऊपर से बताती भी नहीं कि वो आज आयेगी या नहीं । महारानी का इंतजार करते रहो, करते रहो । जब बहुत देर तक नहीं आये तो फोन से पूछो कि महारानी जी आज पधारने का कष्ट करेंगी या नहीं ? और वो बड़ी मासूमियत से कहेगी , " मैडम जी, आज घर पर बहुत जरूरी काम आ गया इसलिए आज आ नहीं पाऊंगी " । तब बड़ा गुस्सा आता है लेकिन दांत पीस कर रह जाने के अलावा और क्या कर सकते हैं ?

लेकिन गुस्से पर नियंत्रण करके मीठी आवाज में फिर भी कह ही देते हैं
"तो ये बात तो फोन पे भी बता सकती थी ना तू "।
"हां मैडमजी, बता तो सकती थी पर मैं भूल गयी थी "।
"वैसे तो तू दिन भर फोन पे लटकी रहती है मगर जरूरत के समय तू हमेशा ही फोन करना भूल जाती है" ।

और वो हंसकर कहती, " मैडमजी, मेरी तो आदत ही भूलने की है। कितने घरों को संभालती हूँ मैं ? अब किस किस मेमसाहब को फोन करूँ ? आप ही बताइये , मैं भी क्या करूं " ? बड़ी मासूमियत से वह कहती । इतनी मासूमियत पर तो भगवान भी रीझ जायें ।

ऐसे वाकयों से बचने के लिए ही उन्होंने बाई नहीं लगाई , ऐसा वे कहती हैं । सुधा के थके हुए चेहरे को देखकर सतीश का दिल उदास हो जाता है। चेहरे पर करुणा के भाव के साथ साथ असीम प्यार भी उमड़ता है सुधा के लिए। लेकिन सुधा है कि मानती नहीं ।

बहरहाल, सतीश ने सुधा के बालों में उंगली फिराते हुये कहा । " शेखर से बात हुई क्या " ।
"नहीं, आजकल तो नहीं हुई "।
"फिर वो 1 फरवरी वाला कार्यक्रम करना है कि नहीं "?
"करना क्यों नहीं है "?
"कहीं शेखर ने और कोई कार्यक्रम तो नहीं बना लिया है "?
"नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है ? ये बात तो बहुत पहले ही हो चुकी थी कि शादी की पहली वर्षगांठ तो आगरा ही मनाएंगे" ।
"हो सकता है उसे याद नहीं रहा हो" ?
"ऐसा कैसे हो सकता है। दृढ़ विश्वास से उसका चेहरा दमक रहा था "।
"चलो , पूछ लेते हैं अभी"  । कहकर सतीश ने शेखर को फोन लगा दिया। थोड़ी देर कुशल क्षेम और इधर उधर की बातें करने के बाद मुद्दे पर आते हुए सतीश ने पूछा कि वह आगरा कब आ रहा है । शेखर ने कहा, "अभी तो कोई कार्यक्रम नहीं बनाया"।
सतीश ने विस्मय से पूछा," क्या मतलब ? तेरी शादी की पहली सालगिरह आने वाली है और तूने अभी तक आने का कार्यक्रम ही नहीं बनाया" ?
"मैं सोच रहा था पापा कि हम लोग शादी की पहली सालगिरह कहीं बाहर जाकर मनायें । मतलब , भारत से बाहर" ।
"क्या ? ऐसा क्यूं ? अपनी तो बात हुई थी कि पहली सालगिरह आगरा में ही मनेगी, धूमधाम से । फिर ये विदेश में मनाने की बात कहां से आई" ?

"वो सविता कह रही थी कि पहली सालगिरह पेरिस में मनाएंगे । इसलिए मैंने आगरा आने का कार्यक्रम अभी नहीं बनाया "।

सतीश अचानक ही चौंक गया ये सुनकर । उसने तो ऐसा सोचा ही नहीं था । थोड़ा संभलकर बोला ।" क्या पेरिस जाने का कार्यक्रम बन गया" ?
"हां पापा , ऐरोप्लेन  के टिकट भी करा लिये और होटल भी बुक हो गई "। शेखर बोला "अच्छा, मम्मी से बात कर ले" ।

और फिर से वही बातें हुईं । सुधा काफी नाराज़ लग रही थी । " तूने पेरिस का कार्यक्रम बनाने से पहले एक बार भी पूछा तक नहीं " ।
मां बेटे में थोड़ी देर तक नोंक-झोंक होती रही ।
फिर मुझे हस्तक्षेप करना पड़ा ।
ठीक ही तो है । जिनकी सालगिरह है उनको ही कार्यक्रम बनाना चाहिए । कहां जाना है? कब जाना है ? कहां कहां घूमना है ? आदि आदि ।
" लेकिन जब पहले बात हो गई थी कि पहली सालगिरह आगरा में ही मनेगी , तो अब कार्यक्रम क्यों बदला ? और हमसे पूछा तक नहीं ? ये सही नहीं हुआ "

मुझे लगा कि बाहर का कार्यक्रम बनाया इसके बजाय इसका दुख ज्यादा था कि हमसे पूछा तक नहीं । मैंने सांत्वना देते हुए कहा , "दोनों को जहां अच्छा लगे , वहां जायें । इसमें हमें क्या परेशानी है "?
" नहीं, परेशानी तो कुछ नहीं है मगर दुख इस बात का है कि ये बात पहले ही हो गई थी कि पहली सालगिरह आगरा में अपने घर पर ही मनेगी । फिर इसमें परिवर्तन क्यों हुआ ? आगे की सालगिरह तो ये लोग जहां चाहें वहां मनायें , हमें क्या "?
"कोई बात नहीं । जाने दो । जहां उनकी मर्जी , वहां मनायें आखिर सालगिरह उनकी है" ।

सुधा मन में टीस लेकर के चुप हो गई। वैसे मां बाप का कर्त्तव्य भी यही है कि अपने बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी तलाश करते हैं । पर मन में एक छोटी सी कसक जरूर रह गई थी कि पेरिस का कार्यक्रम बनाते वक्त हमसे सलाह भी नहीं ली गईं। लेकिन इतनी छोटी सी बात को गले से लगाना ठीक नहीं था । अतः उसे भुला देना ही उचित समझा ।

दिन बीतते चले गये। होली आने वाली थी । होली पर शेखर को हालांकि छुट्टी नहीं मिली लेकिन ' वर्क फ्राॅम होम ' करने की इजाजत जरूर मिल गई थी । पूरे एक सप्ताह का कार्यक्रम बनाया था उसने । होली से एक दिन पहले दोनों आ गये । घर में उत्सव जैसा माहौल हो गया । वैसे उत्सव तो था ही लेकिन शेखर और सविता के आने से चार चांद लग गए । खूब जी भरकर होली खेली । स्वादिष्ट गुंजिया और पकवानों से होली का आनंद दुगना हो गया। होली पर सबसे रामा श्यामा हुई । सविता के पापा श्यामसुंदर जी का फोन आया तो पता चला कि सविता कानपुर रविवार को जायेगी । सात दिन वहां रुकेगी । सतीश अवाक रह गया। सविता ने तो अभी तक बताया ही नहीं कि वह कानपुर कब जायेगी, कब वापस आयेगी ? अपनी मर्जी से ही कार्यक्रम बना लिया , हमसे पूछा तक नहीं !

सतीश को थोड़ा नागवार गुजरा । सुधा से जब इसकी चर्चा हुई तो उसे भी नागवार लगा । लेकिन अब तो कार्यक्रम भी बन चुका था । सतीश को लगा कि क्या वो अवसर आ गया है जब अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर‌ देनी चाहिए ? सुधा ने उसे रोका । त्यौहार का अवसर है , ऐसे में कोई उल्टी सीधी बात ना हो जाए ।  सतीश ने उसे समझाने की कोशिश भी की कि हो सकता है कि दोनों अभी नादान हैं लेकिन उनको बताना तो पड़ेगा कि एकबार घरवालों से भी विचार विमर्श करना आवश्यक है ।
लेकिन सुधा ने उसे रोक दिया और बात आई गई हो गई ।

सविता कानपुर चली गई। शेखर भी अपनी ड्यूटी पर जाने वाला था। इन दिनों कोरोना वायरस का संकट तेजी से बढ़ रहा था । पूरे विश्व में यह महामारी फैल चुकी थी। सुधा ने शेखर को बहुत समझाया कि अपने बॉस से एकबार बात कर के यहीं से वर्क फ्राॅम होम कर ले लेकिन शेखर नहीं माना और ड्यूटी पर चला गया ।

इधर , कोरोना संकट तेजी से फैलने लगा। पूरे देश में लॉकडाउन घोषित कर दिया गया । जो जहां है वो वहीं रहेगा, ऐसी घोषणा प्रधानमंत्री जी ने टेलीविजन पर कर दी । शेखर ड्यूटी पर , सविता कानपुर और सतीश व सुधा आगरा में । सुधा बहुत चिंतित हो रही थी कि शेखर अकेला है । उसने बहुत कहा कि मेरे शेखर को चेन्नई से बुलवा लो । लेकिन कैसे बुलवाते । एयर सर्विस बंद हो चुकी थी। कार से आ नहीं सकते थे । फिर क्या करते ? फिर यात्रा में कोरोना संक्रमण का खतरा भी था ।

अब सुधा थोड़ी चिंता में रहने लगी । उसने कहा , आपकी तो प्रशासन में अच्छी पकड़ है , मेरी बहू सविता को ही बुलवा दो । आपने बहुतों के पास बनवा दिये , एक पास सविता का भी बनवा दो ना जिससे वो यहां आ जाये ।
सतीश ने पूछा, " क्या सविता ने तुझे ऐसा कहा "?
"नहीं "
"फिर ऐसा क्यों कहती हो ? जब उसकी इच्छा यहां आने की है ही नहीं तो हम उसे जबरदस्ती क्यों रखें ? अपने मम्मी पापा के पास रह रही है। खूब रहने दो उसे। जब तक उसका मन ना भर जाये" ।

सुधा चुप रह गई । उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके वात्सल्य में कहां कमी रह गई । उसने सोच रखा था कि इस बार गर्मियों की छुट्टियों में वह अपने बेटा- बहू के पास जाकर 15-20 दिन रहेगी । लेकिन अब उसने अपना विचार बदल दिया है । अब वो कहती है कि अपना घर ही स्वर्ग से सुंदर होता है ।  इससे बढ़कर आराम और कहां मिलेगा ?


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5 Comments

sunanda

01-Feb-2023 03:37 PM

very nice

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Seema Priyadarshini sahay

23-Jan-2022 12:53 AM

बहुत सुंदर रचना

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Hari Shanker Goyal "Hari"

23-Jan-2022 06:14 PM

🙏🙏

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Arjun kumar

22-Jan-2022 03:47 PM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

22-Jan-2022 09:44 PM

धन्यवाद जी

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